Tuesday, January 31, 2017

इस सैनिक की बहादुरी के आप भी हो जायेंगे कायल।

इस सैनिक की बहादुरी सुन आप भी कह उठेंगे

"इज़्ज़त दे न अज़मत दे, सूरत दे न सीरत दे
हे खुदा हे बस मुझे वतन की खातिर कुछ करने की हिम्मत दे बस मुझे मरने की हिम्मत दे"



एक ऐसा ही सैनिक था शहीद जगदीश चन्द। जी हां हवलदार जगदीश चन्द बहादुरी और देश के लिए मर मिटने वाली एक ऐसी शख्सियत जिसने दुश्मनों के नाकों चने चववा दिए। हिमाचल प्रदेश के जिला चम्बा के भटियात के जगदीश चन्द ने सेना में 24 साल तक देश की सेवा की।  वैसे तो सेना से रिटायर हो चुके थे 2010 में परन्तु सेना के प्रति अपना समर्पण कुछ ऐसा कि घर बैठना रास नहीं आया और डिफेन्स सिक्योरिटी कोर के रूप में फिर से सेना में सेवा देना शुरू किया और लेह में तैनात हुए परन्तु माँ भारती को कुछ और ही मंजूर था भारत माता जैसे जगदीश चन्द से कुछ और करवाना चाहती थी इसीलिए जगदीश चन्द को पठानकोट बुला लिया 1 जनवरी 2016 को पठानकोट में अपनी ड्यूटी ज्वाइन करने निकले और डयूटी के पहले दिन ही
2 जनवरी 2016 की वो सुबह जब आतंकवादियों ने अपने नापाक मंसूबो के साथ पठानकोट एयरवेज पर हमला किया और जब वो अंधाधुंध गोलियां चलाते हुए मैस में पँहुचे तो वँहा सामने ढाल बन कर खड़े थे जगदीश चन्द हिम्मत ऐसी की आतंकियों की ak 47 के सामने निहत्थे खड़े हो गए और आतंकी की ही राइफल छीन कर आतंकी को मार गिराया। तभी पीछे से चूहों की भांति खड़े अन्य आतंकियों ने जगदीश चन्द पर फायरिंग कर दी थोड़ी देर गुथमगुथा होने के बाद जगदीश चन्द माँ भारती की गौद ने चिर निद्रा की और चले गए भारत माता का ये बहादुर सपूत वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी बहादुरी की ये गाथा युगों युगों तक अमर रहेगी। भारत सरकार ने उनकी इस बहादुरी के लिए उन्हें शौर्य चक्र दे कर सम्मानित किया। आओ ऐसे असली धरती पुत्रों की कीर्ति को और फैलाये लोग उन्हें युगों युगों तक याद रखे बच्चे उनकी बहादुरी का अनुकरण करें यही ऐसे शहीदों को सच्ची श्रदांजलि होगी । जय हिंद


शहीद जगदीश और अन्य शहीदों को समर्पित मेरी ये रचना।
शहीदों को सलाम
आतंक का देखो कैसा ये कोहराम मचा है,कभी पठानकोट तो कभी उड़ी की साजिश को रचा है।
कई शहिदों ने शहादत का जाम पिया
शहीद जगदीश ने भी ऊँचा भारत का नाम किया,
शहीद हुए देश की खातिर,सीने पर गोली खाई थी,
आओ झुक कर करें सलाम इन्हें क्योंकि भारत माँ की लाज बचाई थी ।
लुट गयी माँ औ की कोख,कंही सिन्दूर ही उजड़ गया
गिली थी हाथो की मेंहदी अभी, कंही बजी अभी शहनाई थी,
शहीदों ने भारत माँ की लाज बचाई थी,
शहीदों ने भारत माँ की लाज बचाई थी।

लेखक परिचय:-
आशीष बहल
चुवाड़ी जिला चम्बा हि प्र
कवि, लेखक, अध्यापक और स्तम्भ लेखन विभिन्न समाचार पत्रों में

Saturday, January 28, 2017

आखिर क्या रहस्य है इस मंदिर में???

चम्बा के साहू में है ये रहस्यमयी चन्द्रशेखर मंदिर

जिला चम्बा मुख्यालय से लगभग 15 km दूर साहू गांव में स्थापित है चन्द्रशेखर के नाम से प्रसिद्ध एक विशाल शिवलिंग। ये चन्द्रशेखर मंदिर अपने आप में कई पौराणिक कथाएं समेटे है। तथा भारत के समृद्ध संस्कृति व आस्था का प्रतीक है ये मंदिर। मंदिर प्राचीन शैली से निर्मित है और लगभग 1100 साल पुराना बताया जाता है।
तांबे से जड़ित शिवलिंग

स्थापना का रहस्य :-

बताते हैं कि बहुत समय पहले साल नदी के समीप एक ऋषि गुफा में रहते थे जो साथ वहती साल नदी में स्नान करने जाते थे परन्तु वो जब भी सुबह वँहा पँहुचते उनसे पहले कोई नदी में स्नान कर जाता था इस बात से ऋषि हैरान हुए और उन्होंने ये जानने के लिए कि आखिर कौन उनसे पहले स्नान करने वाला धर्मात्मा पैदा हो गया वो इसकी खोज में लग गए । भगवान महेश सब जानते थे और मुनि की चिंता को भी समझते थे। अन, जल त्याग कर मुनि इस रहस्य को जानने में लग गए। तभी एक  सुबह ही 3 शिलाएं महेश, चन्द्रशेखर, और चन्द्रगुप्त नदी में स्नान करने उतरती हैं  ऋषि का मन ये देख हर्षित हो उठता है सही समय जान ऋषि उनके समीप जाते हैं जैसे उनके पास पँहुचे तो एक शिला कैलाश पर्वत की तरफ चली जाती है जो आज प्रसिद्ध मणिमहेश के रूप में बिश्वविख्यात है। चन्द्रगुप्त शिला ने उसी नदी में डुबकी लगाई और बहते हुए चम्बा नगरी के पास दुम्भर ऋषि के समीप जंहा दो नदियां साल और रावी मिलती है वंही विश्राम किया। एक दिन चन्द्रगुप्त ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिए और राजा ने चन्द्रगुप्त को लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास चन्द्रगुप्त को स्थापित किया। तीसरी शिला चन्द्रशेखर के रूप में वहीँ पर रुक गयी और वंही ठोस बन गयी। जब ऋषि ने उस शिला को उठाने का प्रयास किया तो असफल रहे वह बहुत भारी हो गयी। ऋषि का मन बहुत व्याकुल हुआ की आखिर इतनी तपस्या के बाद भी क्या हासिल हुआ तब ऋषि को भविष्यवाणी हुई कि पास ही एक गांव पंडाह में एक विन्त्रु सती रहती है अगर वो मुझे स्पर्श करेगी तो मैं फल की भांति हल्का हो जाऊंगा और यंहा से हिल पाउँगा और जंहा मुझे स्थापित होना होगा वँहा मैं भारी हो जाऊंगा। ऋषि ने उस सती भक्त को ढूंढा परन्तु सती ने साथ न आने का कारण बताते हुए कहा कि न तो उसके पति घर में हैं बालक अभी सोया है, मखन पिघलने के लिए रखा है और दूध अभी उबलने रखा है मैं इस समय नहीं आ सकती तो ऋषि ने वरदान दिया कि जब तक तू वापिस नहीं आयेगी बालक सोया रहेगा न मखन जलेगा न दूध उबलेगा। तू चिंता न कर और मेरे वरदान को सत्य जान। तब ऋषि अपने साथ उसे लेकर आये सती ने शिला को स्पर्श किया तथा समस्त नगर वासियों सहित शिला को पालकी में डाल कर और वँहा से चलना आरम्भ किया तभी साहू गांव में पँहुचते ही वो शिला शिवलिंग भारी हो गयी और वंही गांव में मंदिर की स्थापना की गयी।
यात्रा के दौरान अपने सहयोगियों के साथ


 शिवलिंग को मेखली की पकड़ में रखा जाता और ये शिवलिंग दिन प्रतिदिन बड़ा होता जाता जितना भाग जमीन के ऊपर है उतना ही जमीन के नीचे बढ़ता जाता। एक दिन भगवान चन्द्रशेखर ने ऋषि को स्वप्न में बताया कि मेरे आसपास और मेखली न लगायी जाये जो मेखली शेष है उसे बाहर मंदिर के आंगन में लगा दिया जाये जो यंहा आने वाले समस्त जन मानुषों के दुखों का संहार करेगी। इस तरह चन्द्रशेखर महाराज वँहा स्थापित हुए। आज भी मणिमहेश के समान ही वँहा मेला लगता है मणिमहेश की यात्रा को तब तक सम्पूर्ण नहीं माना जाता जब तक साहू के मंदिर में माथा न टेका जाये इसलिए बहुत से लोग इस मंदिर में दर्शन को आते हैं। एशिया के सबसे विशाल शिवलिंग में गिना जाता है।

नंदी महाराज की स्थापना :-





जो इस मंदिर के बारे में एक और रोचक तथ्य है वो है यंहा पर स्थापित नंदी की प्रतिमा ये मंदिर के बिलकुल सामने स्थित है। इन नंदी के निर्माण का पहलूँ भी काफी रहस्यमयी है ये नंदी अपने आप उस जगह पर स्थापित हुए हैं। कहते है कि वो असली नंदी है जो रोज लोगो की फसल तबाह कर देते थे तो एक दिन ग्वाले ने उन्हें देख लिया और उन्हें रोकने के लिए पूंछ से पकड़ लिया और बस उसी समय उसी जगह वो नंदी और ग्वाल शिला रूप में परिवर्तित हो गए। आज भी नंदी के पीछे ग्वाल लटका हुआ दिखता है। तथा जो घण्टी नंदी के गले में है वो टन की आवाज देती है। विज्ञान में रूचि रखने वाले काफी लोगों ने इस पर खोज की परन्तु आस्था के आगे सब नतमस्तक है इसका रहस्य कोई जान नहीं पाया। इस प्रकार की नंदी की प्रतिमा अन्य किसी जगह में देखने को नहीं मिलेगी। देखने में सजे धजे नंदी के रूप में दीखते है जो अनायास ही किसी को भी अपनी और आकर्षित कर लें। 
लेखक परिचय:-
आशीष बहल 
चुवाड़ी जिला चम्बा हि प्र
अध्यापक, लेखक,कवि व विभिन्न अखबारों में स्तम्भ लेखन।
E-mail ___ ishunv0287@gmail.com

Tuesday, January 24, 2017

बेटियां अनमोल हैं


                     बेटियाँ अनमोल हैं

क्या सच में घर का श्रृंगार हैं बेटियां,
फिर समाज में क्यों दिखती आज भी लाचार हैं बेटियां
माना कि पापा की लाडली ,माँ की दुलारी हैं बेटियां,
पर सड़क पर आज भी वहशी दरिंदो की शिकार है बेटियां ।
नवरात्रों में देवी और घर की लक्ष्मी है बेटियां,
पर क्यों कोख में आज भी मार दी जाती है बेटियां
कहने को दो घरो की शान है बेटियां, पर सच इतना है कि अपने घर में भी मेहमान है बेटियां ।
खेल, शिक्षा हर जगह कमाती नाम हैं बेटियां,
पर समाज में आज भी गुमनाम है बेटियां
कन्हा ख़ुद के लिए जीती हैं बेटियां , घर समाज को संवार खुद को भूल जाती हैं बेटियां
कुछ पैसो के लिए आज भी बेच दी जाती हैं बेटियां ।
बेटो से आज कंहा कम है बेटियां, हर जगह नित नया आगाज़ है बेटियां
पर आज भी दहेज़ के लिये जला दी जाती हैं बेटियां
खुद को भूल दूसरों के लिए जीती है बेटियां,
माँ, बहन, और पत्नी कई रूपों में फर्ज निभाती हैं बेटियां
पर समाज में आज भी ठुकरा दी जाती हैं बेटियां
खुद ही खुद से जंग लड़ आगे बढ़ रही है बेटियां
मतलब की इस दुनिया में प्यार सीखा रही हैं बेटियां,
दुनिया की इस भीड़ में अकेली ही चल रही है बेटियां,
पोस्टरों, भाषणों में ही बचा रहे हैं बेटियां,
वरना सच यह है कि कोख में मरवा रहे है बेटियां,
खुदगर्ज इस दुनियां में आज भी अस्तित्व की तलाश में भटक रही हैं बेटियां।
✍✍✍आशीष बहल चुवाड़ी जिला चम्बा

Chamba Rumal is so famous embroidery art जानें क्यों प्रसिद्ध है चम्बा रुमाल

चम्बा का पारम्परिक हुनर चम्बा रुमाल
 भूमिका :--
भारत अपना 68 वा गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है। ये पल और ये दिन हर भारतवासी के लिए बहुत ही यादगार होता है जब भारत की विविधता में एकता को प्रकट करती कई झांकिया पेश की जाती हैं इस बार 26 जनवरी 2017 को गणतंत्र दिवस की परेड में एक बार फिर हिमाचल वासियों के लिए गौरवमयी क्षण होगा जब 26 जनवरी की झांकी में तीन साल बाद राजपथ पर हिमाचल की पारम्परिक कला और संस्कृति को पेश करती हुई ऐतिहासिक चम्बा रुमाल की झांकी पेश की जायेगी। इस बार प्रदेश भाषा कला एवं संस्कृति विभाग और विवि के विजुअल आर्ट विभाग के प्रोफेसर एवं आर्टिस्ट प्रो. हिम चटर्जी के विषय और मॉडल को केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने स्वीकार किया है।
हर वर्ष 26 जनवरी की परेड में देश के सभी राज्यों से अपनी संस्कृति की झलक दिखाती झांकियों को पेश किया जाता है जिससे देश के अन्य राज्य एक दूसरे की कला और संस्कृति से परिचित होते हैं तथा पुरे विश्व में भारत की विवध संस्कृति को पहचान मिलती है।पिछले तीन साल से हिमाचल की तरफ से पेश किये किसी भी मॉडल को राष्ट्रीय स्तर का न होने के कारण मंजूर नहीं किया गया। 2013 में हिमाचल की तरफ से जनजातीय जिले किन्नौर की शादी की परंपरा को दिखाती झांकी को राजपथ पर दर्शाया गया था। इस बार हिमाचल की तरफ से जिला चम्बा गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर अपनी ऐतिहासिक विरासत,अद्भुत कला और संस्कृति की मिसाल पेश करते हुए चम्बा रुमाल के इतिहास जीवंत करेगा।

इतिहास:--
वैसे तो हिमाचल के पास कला संस्कृति की कोई कमी नहीं है पूरा हिमाचल अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए जाना जाता है। हिमाचल की संस्कृति को हमेशा लोगो के दिलों में वसाए रखने में जिला चम्बा का अपना एक अहम योगदान रहा है। चम्बा रुमाल भी उनमें से एक है। आज जब चम्बा रुमाल को राष्ट्रीय स्तर की झांकी के लिए चुना गया है तो साथ ही इसकी पहचान अंतराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक मजबूत होगी। जब चम्बा रुमाल के कारण एक बार फिर हिमाचल वासी खुद को गणतंत्र दिवस की परेड में गौरवान्वित महसूस करेंगे तो ऐसे समय में चम्बा रुमाल के गौरवमयी इतिहास को जानना तथा वर्तमान परिपेक्ष्य में चम्बा रुमाल की अलौकिक कला को समझना अत्यंत आवश्यक है। चम्बा रुमाल के बारे में लिखने और पढ़ने के लिए इतना कुछ है कि उसे किसी एक लेख में परिभाषित नहीं किया जा सकता फिर भी मुख्य बातों को लिखने का प्रयास किया है। चम्बा रुमाल की अद्भुत कशीदाकारी काफी प्राचीन है 16 वीं शताब्दी से भी पहले की ये कला चम्बा ही नहीं बल्कि आसपास भी काफी प्रसिद्ध थी शुरू में ये काँगड़ा , नूरपुर, मंडी और जम्मू के वासोहली में पहाड़ी चित्रकला के रूप में काफी प्रसिद्ध थी। पहाड़ी चित्रकला और शिल्पकला का चम्बा रुमाल एक अनूठा मिश्रण है।  ऐसा भी विश्वास है कि 16वीं शताब्दी  'बेबे नानकी' जो कि गुरु नानक देव जी की बहन थी द्वारा गुरु नानक जी को भेंट किया गया रुमाल आज भी होशियार पुर के गुरूद्वारे में संरक्षित किया गया है जिसे कि चम्बा रुमाल की सबसे प्राचीन कृति के रूप में कुछ लोग मानते हैं।
17 वीं सदी में राजा पृथ्वी सिंह ने चम्बा रुमाल की कला को बहुत अधिक संवारा और रुमाल पर "दो रुखा टांका" कला शुरू की। राजा पृथ्वी सिंह ने महिलाओं के लिए शिक्षा के स्थान पर चम्बा रुमाल की कला को सीखना अनिवार्य किया गया तथा हर शुभ कार्य में चम्बा रुमाल भेंट करने की रस्म शुरू की जो आज भी प्रचलित है लोग आज भी विवाह आदि रस्मों में एक दूसरे को चम्बा रुमाल भेंट करते है यही कारण है कि आज भी ये कला लोगो के बीच में जिन्दा है।
18 वीं शताब्दी में चम्बा रुमाल का काम जोरो पर था। बहुत से कारीगर इस कला से जुड़े थे। उस समय के राजा उमेद सिंह ने इस कला को और कारीगरों को संरक्षण दिया तथा चम्बा रुमाल की कला को दूर तक पंहुचाया। लन्दन के विक्टोरिया अल्बर्ट म्यूजियम में रखा गया चम्बा का रुमाल इसके महान इतिहास के दर्शन करवाता है जिसे चम्बा के राजा गोपाल सिंह ने 1883 में ब्रिटिश सरकार के नुमाइंदों को भेंट किया था जिसमे कुरुक्षेत्र युद्ध की कृतियों को उकेरा गया है। 1911 में चम्बा के राजा भूरी सिंह के द्वारा भी इस हुनर को बहुत सम्मान दिया गया दिल्ली दरबार में ब्रिटिश सरकार को चम्बा रुमाल की कई कलाकृतियां भेंट की।



अद्भुत कला और कशीदाकारी :--

            चम्बा रुमाल अपने अद्भुत कला और शानदार कशीदाकारी के कारण निरन्तर प्रसिद्धि की नई इबारत लिखता गया। चम्बा रुमाल की कारीगरी मलमल , सिल्क के तथा कॉटन के कपड़ो पर की जाती है जो कि वर्गाकार तथा आयातकार होते हैं। कई प्रकार की कलाओं को इसमें अंकित किया जाता है जिसमे मुख्यतः श्री कृष्णलीला को बहुत ही सुंदर ढंग से रुमाल के ऊपर दोनों तरफ कढ़ाई करके उकेरा जाता है तथा साथ ही महाभारत युद्ध, गीत गोविन्द से लेकर कई मनमोहक दृश्यों को इसमें बड़ी ही संजीदगी के साथ बनाया जाता है। रुमाल पर खास तरह की कढ़ाई करने की इस कला का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट करवाया गया है। रुमाल पर की गई कढ़ाई ऐसी होती है कि दोनों तरफ एक जैसी कढ़ाई के बेल बूटे बनकर उभरते हैं। यही इस रुमाल की खासियत है।

लोक संस्कृति में स्थान :--

यहां की लोक संस्कृति और गीतों में भी रुमाल की बात सुनने को मिलती है। लोकगीतों में ये लोकगीत
"राम लछमन चोपड़ खेलदे,
सिया रानी कडदी कसीदा"
काफी प्रसिद्ध है जो कि कई खास मौकों पर गाया जाता है।
लोगो के निजी जीवन व पारंम्परिक रीती रिवाजो में भी चम्बा रुमाल को अहम स्थान दिया जाता है चम्बा के लोग विवाह शादी के समय दूल्हे दुल्हन को शगुन स्वरूप चम्बा रुमाल भेंट करते हैं। पुराने समय में राजपरिवारों में भी चम्बा रुमाल को भेंट स्वरूप दिया जाता था यही कारण है कि चम्बा की पारम्परिक कला आज भी लोगो में उतनी अधिक प्रसिद्ध है।

विभिन्न व्यक्तित्व और सम्मान:---

चम्बा रुमाल को पहचान दिलाने के लिए बहुत से लोगो को हमेशा याद किया जाता है 1965 में चम्बा रुमाल के लिए पहला राष्ट्रीय पुरस्कार श्री मति माहेश्वरी जी को दिया गया इसके बाद कई लोगो को ये पुरस्कार मिले तथा इस प्राचीन कला को जीवंत रखा जिसमें मुख्य नाम पद्म श्री अवार्ड से सम्मानित विजय शर्मा जी, सोहन लाल, कमला नैयर, सराज बेगम, अमी चन्द, चिमि देवी, आनंद प्रकाश आदि का है।
इसमें बहुत बड़ा और अहम  योगदान श्री मति ललिता वकील जी का है जिन्हें 1993 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया तथा 2012 में राष्ट्रपति द्वारा शिल्प गुरु सम्मान से सम्मानित किया गया ये सम्मान पाने वाली ये इकलौती हिमचली हस्तशिल्पी हैं। श्री मति ललिता जी ने चम्बा रुमाल की हस्तकला को जीवित रखने तथा अन्य लोगो तक इसे पँहुचांने में विशेष योगदान दिया है। उन्होंने बहुत से लोगो को इस कला को सिखाया तथा दूर दूर तक चम्बा रुमाल की पहचान कराई तथा इस महान कला को संवारा सजाया और यही कारण है कि आज चम्बा रुमाल राजपथ पर अपनी चमक बिखेरने को तैयार है। इस  झांकी में चंबा चौगान, लोक गीत के साथ पांच साल पूर्व में मनाए गए एक हजार वर्ष के उपलक्ष्य में बनाए गेट को भी दिखाया जाएगा।

रोजगार में अवसर :---

आज बहुत से लोग इस खासकर महिलाएं इस कला को संजोने और सहजने में लगी हुई है। सरकार को चाहिए कि इस पुरानी कला को रोजगार क्षेत्र से जोड़े। आज चम्बा रुमाल की मांग और लोगो के बीच में पसन्द इस कदर बढ़ रही है कि चम्बा रुमाल 5 हजार से 50 हजार की कीमत तक बिकते है यदि हिमाचल सरकार द्वारा स्कूलों में वोकेशनल शिक्षा में चम्बा रुमाल के विषय को जोड़ा जाए तो ये अपने आप में एक बहुत ही बेहतर कदम होगा। इससे आने वाली पीढ़ी तक ये कला हस्तांतरित होगी और अद्भुत सांस्कृतिक विरासत को दीर्घकाल तक बचाया जा सकेगा। अतः हम सब मिलकर इस कला के प्रति अपना सम्मान दे और गणतंत्र दिवस की परेड में मिलकर अद्भुत पारम्परिक कला का स्वागत करें।

आशीष बहल चुवाड़ी जिला चम्बा
जे बी टी अध्यापक
लेखक और कवि
Ph 9736296410
Email.  ishunv0287@gmail.com

Saturday, January 21, 2017

चम्बा रुमाल का गौरवमयी इतिहास

गणतंत्र दिवस पर चमक बिखेरेगा चम्बा रुमाल

भूमिका :--

भारत अपना 68 वा गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है। ये पल और ये दिन हर भारतवासी के लिए बहुत ही यादगार होता है जब भारत की विविधता में एकता को प्रकट करती कई झांकिया पेश की जाती हैं इस बार 26 जनवरी 2017 को गणतंत्र दिवस की परेड में एक बार फिर हिमाचल वासियों के लिए गौरवमयी क्षण होगा जब 26 जनवरी की झांकी में तीन साल बाद राजपथ पर हिमाचल की पारम्परिक कला और संस्कृति को पेश करती हुई ऐतिहासिक चम्बा रुमाल की झांकी पेश की जायेगी। इस बार प्रदेश भाषा कला एवं संस्कृति विभाग और विवि के विजुअल आर्ट विभाग के प्रोफेसर एवं आर्टिस्ट प्रो. हिम चटर्जी के विषय और मॉडल को केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने स्वीकार किया है।
हर वर्ष 26 जनवरी की परेड में देश के सभी राज्यों से अपनी संस्कृति की झलक दिखाती झांकियों को पेश किया जाता है जिससे देश के अन्य राज्य एक दूसरे की कला और संस्कृति से परिचित होते हैं तथा पुरे विश्व में भारत की विवध संस्कृति को पहचान मिलती है।पिछले तीन साल से हिमाचल की तरफ से पेश किये किसी भी मॉडल को राष्ट्रीय स्तर का न होने के कारण मंजूर नहीं किया गया। 2013 में हिमाचल की तरफ से जनजातीय जिले किन्नौर की शादी की परंपरा को दिखाती झांकी को राजपथ पर दर्शाया गया था। इस बार हिमाचल की तरफ से जिला चम्बा गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर अपनी ऐतिहासिक विरासत,अद्भुत कला और संस्कृति की मिसाल पेश करते हुए चम्बा रुमाल के इतिहास जीवंत करेगा।




इतिहास:--

वैसे तो हिमाचल के पास कला संस्कृति की कोई कमी नहीं है पूरा हिमाचल अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए जाना जाता है। हिमाचल की संस्कृति को हमेशा लोगो के दिलों में वसाए रखने में जिला चम्बा का अपना एक अहम योगदान रहा है। चम्बा रुमाल भी उनमें से एक है। आज जब चम्बा रुमाल को राष्ट्रीय स्तर की झांकी के लिए चुना गया है तो साथ ही इसकी पहचान अंतराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक मजबूत होगी। जब चम्बा रुमाल के कारण एक बार फिर हिमाचल वासी खुद को गणतंत्र दिवस की परेड में गौरवान्वित महसूस करेंगे तो ऐसे समय में चम्बा रुमाल के गौरवमयी इतिहास को जानना तथा वर्तमान परिपेक्ष्य में चम्बा रुमाल की अलौकिक कला को समझना अत्यंत आवश्यक है। चम्बा रुमाल के बारे में लिखने और पढ़ने के लिए इतना कुछ है कि उसे किसी एक लेख में परिभाषित नहीं किया जा सकता फिर भी मुख्य बातों को लिखने का प्रयास किया है। चम्बा रुमाल की अद्भुत कशीदाकारी काफी प्राचीन है 16 वीं शताब्दी से भी पहले की ये कला चम्बा ही नहीं बल्कि आसपास भी काफी प्रसिद्ध थी शुरू में ये काँगड़ा , नूरपुर, मंडी और जम्मू के वासोहली में पहाड़ी चित्रकला के रूप में काफी प्रसिद्ध थी। पहाड़ी चित्रकला और शिल्पकला का चम्बा रुमाल एक अनूठा मिश्रण है।  ऐसा भी विश्वास है कि 16वीं शताब्दी  'बेबे नानकी' जो कि गुरु नानक देव जी की बहन थी द्वारा गुरु नानक जी को भेंट किया गया रुमाल आज भी होशियार पुर के गुरूद्वारे में संरक्षित किया गया है जिसे कि चम्बा रुमाल की सबसे प्राचीन कृति के रूप में कुछ लोग मानते हैं।
17 वीं सदी में राजा पृथ्वी सिंह ने चम्बा रुमाल की कला को बहुत अधिक संवारा और रुमाल पर "दो रुखा टांका" कला शुरू की। राजा पृथ्वी सिंह ने महिलाओं के लिए शिक्षा के स्थान पर चम्बा रुमाल की कला को सीखना अनिवार्य किया गया तथा हर शुभ कार्य में चम्बा रुमाल भेंट करने की रस्म शुरू की जो आज भी प्रचलित है लोग आज भी विवाह आदि रस्मों में एक दूसरे को चम्बा रुमाल भेंट करते है यही कारण है कि आज भी ये कला लोगो के बीच में जिन्दा है।
18 वीं शताब्दी में चम्बा रुमाल का काम जोरो पर था। बहुत से कारीगर इस कला से जुड़े थे। उस समय के राजा उमेद सिंह ने इस कला को और कारीगरों को संरक्षण दिया तथा चम्बा रुमाल की कला को दूर तक पंहुचाया। लन्दन के विक्टोरिया अल्बर्ट म्यूजियम में रखा गया चम्बा का रुमाल इसके महान इतिहास के दर्शन करवाता है जिसे चम्बा के राजा गोपाल सिंह ने 1883 में ब्रिटिश सरकार के नुमाइंदों को भेंट किया था जिसमे कुरुक्षेत्र युद्ध की कृतियों को उकेरा गया है। 1911 में चम्बा के राजा भूरी सिंह के द्वारा भी इस हुनर को बहुत सम्मान दिया गया दिल्ली दरबार में ब्रिटिश सरकार को चम्बा रुमाल की कई कलाकृतियां भेंट की।

अद्भुत कला और कशीदाकारी :--

            चम्बा रुमाल अपने अद्भुत कला और शानदार कशीदाकारी के कारण निरन्तर प्रसिद्धि की नई इबारत लिखता गया। चम्बा रुमाल की कारीगरी मलमल , सिल्क के तथा कॉटन के कपड़ो पर की जाती है जो कि वर्गाकार तथा आयातकार होते हैं। कई प्रकार की कलाओं को इसमें अंकित किया जाता है जिसमे मुख्यतः श्री कृष्णलीला को बहुत ही सुंदर ढंग से रुमाल के ऊपर दोनों तरफ कढ़ाई करके उकेरा जाता है तथा साथ ही महाभारत युद्ध, गीत गोविन्द से लेकर कई मनमोहक दृश्यों को इसमें बड़ी ही संजीदगी के साथ बनाया जाता है। रुमाल पर खास तरह की कढ़ाई करने की इस कला का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट करवाया गया है। रुमाल पर की गई कढ़ाई ऐसी होती है कि दोनों तरफ एक जैसी कढ़ाई के बेल बूटे बनकर उभरते हैं। यही इस रुमाल की खासियत है।

लोक संस्कृति में स्थान :--



यहां की लोक संस्कृति और गीतों में भी रुमाल की बात सुनने को मिलती है। लोकगीतों में ये लोकगीत
"राम लछमन चोपड़ खेलदे,
सिया रानी कडदी कसीदा"
काफी प्रसिद्ध है जो कि कई खास मौकों पर गाया जाता है।
लोगो के निजी जीवन व पारंम्परिक रीती रिवाजो में भी चम्बा रुमाल को अहम स्थान दिया जाता है चम्बा के लोग विवाह शादी के समय दूल्हे दुल्हन को शगुन स्वरूप चम्बा रुमाल भेंट करते हैं। पुराने समय में राजपरिवारों में भी चम्बा रुमाल को भेंट स्वरूप दिया जाता था यही कारण है कि चम्बा की पारम्परिक कला आज भी लोगो में उतनी अधिक प्रसिद्ध है।

विभिन्न व्यक्तित्व और सम्मान:---

चम्बा रुमाल को पहचान दिलाने के लिए बहुत से लोगो को हमेशा याद किया जाता है 1965 में चम्बा रुमाल के लिए पहला राष्ट्रीय पुरस्कार श्री मति माहेश्वरी जी को दिया गया इसके बाद कई लोगो को ये पुरस्कार मिले तथा इस प्राचीन कला को जीवंत रखा जिसमें मुख्य नाम पद्म श्री अवार्ड से सम्मानित विजय शर्मा जी, सोहन लाल, कमला नैयर, सराज बेगम, अमी चन्द, चिमि देवी, आनंद प्रकाश आदि का है।
इसमें बहुत बड़ा और अहम  योगदान श्री मति ललिता वकील जी का है जिन्हें 1993 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया तथा 2012 में राष्ट्रपति द्वारा शिल्प गुरु सम्मान से सम्मानित किया गया ये सम्मान पाने वाली ये इकलौती हिमचली हस्तशिल्पी हैं। श्री मति ललिता जी ने चम्बा रुमाल की हस्तकला को जीवित रखने तथा अन्य लोगो तक इसे पँहुचांने में विशेष योगदान दिया है। उन्होंने बहुत से लोगो को इस कला को सिखाया तथा दूर दूर तक चम्बा रुमाल की पहचान कराई तथा इस महान कला को संवारा सजाया और यही कारण है कि आज चम्बा रुमाल राजपथ पर अपनी चमक बिखेरने को तैयार है। इस  झांकी में चंबा चौगान, लोक गीत के साथ पांच साल पूर्व में मनाए गए एक हजार वर्ष के उपलक्ष्य में बनाए गेट को भी दिखाया जाएगा।

रोजगार में अवसर :---

आज बहुत से लोग इस खासकर महिलाएं इस कला को संजोने और सहजने में लगी हुई है। सरकार को चाहिए कि इस पुरानी कला को रोजगार क्षेत्र से जोड़े। आज चम्बा रुमाल की मांग और लोगो के बीच में पसन्द इस कदर बढ़ रही है कि चम्बा रुमाल 5 हजार से 50 हजार की कीमत तक बिकते है यदि हिमाचल सरकार द्वारा स्कूलों में वोकेशनल शिक्षा में चम्बा रुमाल के विषय को जोड़ा जाए तो ये अपने आप में एक बहुत ही बेहतर कदम होगा। इससे आने वाली पीढ़ी तक ये कला हस्तांतरित होगी और अद्भुत सांस्कृतिक विरासत को दीर्घकाल तक बचाया जा सकेगा। अतः हम सब मिलकर इस कला के प्रति अपना सम्मान दे और गणतंत्र दिवस की परेड में मिलकर अद्भुत पारम्परिक कला का स्वागत करें।

आशीष बहल चुवाड़ी जिला चम्बा
जे बी टी अध्यापक
लेखक और कवि
Ph 9736296410
Email.  ishunv0287@gmail.com


Thursday, January 5, 2017

जरा याद करो क़ुरबानी

शहीदों की जरा याद करो कुर्बानी  ....

शहीदों की शहादत का कोई मोल नहीं लगा सकता। शहीद होने वाले सैनिक अपना सर्वसव देश पर कुर्बान करके चले जाते हैं। और शहीदों की शहादत कभी बेकार न जाये इसके लिए आवश्यक है कि हम इनकी क़ुरबानी को हमेशा याद रखें। जब जब शहीदों का जिक्र होता है आतंक का काला सांप फन उठा कर आँखों के आगे आ जाता है।
आतंक एक ऐसा जहर जो भारत को अंदर ही अंदर खोखला करने में लगा है परंतु देश के वीर सैनिकों के होते ऐसा संभव नहीं दीखता कि आतंकी अपने मनसूबों  में कामयाब हो सकें। पिछले साल के शुरू में ही पठानकोट में हुए आतंकी हमले के रूप में एक ऐसा जख्म भारत को मिला जिसका दर्द हम पूरा साल महसूस करते रहे। 2 जनवरी 2016 को पठानकोट एयरबेस पर पाकिस्तानी आतंकियों ने भारत को धरती को अपने नापाक इरादों से दशहत में डालने का प्रयास किया। आतंकी चूहों की भांति छिप कर 72 घण्टे तक पठानकोट में अपनी आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते रहे 2 जनवरी से 5 जनवरी तक चले इस आतंकी हमले में हमारे वीर जवानों ने आतंकियों को मार गिराया। परन्तु जो जख्म उन आतंकियों ने दिए शायद वो भारतवर्ष कभी भूल नहीं पायेगा। देश के 7 वीर जवान शहीद हो गए। भारत ने ऐसे वीरों को खोया जिसकी भरपाई कभी भी नहीं की जा सकती। शहीद हुए जवानों में 2 जवान हिमाचल के थे। जिसमें एक जिला कांगड़ा के शाहपुर से शहीद जवान संजीवन राणा और दूसरे जिला चम्बा के भटियात क्षेत्र के शौर्य चक्र प्राप्त शहीद जगदीश चन्द जिन्होंने बहादुरी के साथ आतंकी का सामना किया तथा उसी की राइफल से आतंकी को मार गिराया और खुद भी वीरगति को प्राप्त हो गए। पिछले साल मुझे भी शहीद जगदीश जी के परिवार से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उस समय एक बात समझ आई की देश पर शहीद होना देश के लिए जितने फक्र की बात होती है परिवार के लिए इसे स्वीकार कर पाना उतना ही मुश्किल काम। ऐसे में देशवासियों का भी फर्ज बनता है कि सैनिको को ये एहसास दिलाएं कि सैनिक का कोई एक परिवार नहीं होता पूरा देश सैनिकों का परिवार होता है। शहीद जगदीश ने तो रिटायर होने के बाद फिर से देश सेवा का प्रण ले लिया और 1 जनवरी को घर से निकले और 2 जनवरी को देश के नाम अपनी ज़िंदगी कर दी। ये बहादुरी की और देश सेवा की वो मिसाल थे जिनके बारे में सुनकर हर भारतीय के अंदर देशभक्ति की वो ज्वाला उठती है कि शहीदों को  जय हिंद कहने को हाथ खुद व खुद उठ जाएँ। शहीदों की शहादत को मोल भारत वर्ष कभी चुकता नहीं कर सकता ये वो कर्ज है जिसे हम मात्र शहीदों के परिवार को सही हक़ दिला कर ही चुकता कर सकते हैं। परन्तु दिल उस समय बहुत दुःखी होता है जब ये सुनने को मिलता है कि शहीद के परिवार अपना हक लेने के लिए इधर उधर भटक रहे हैं। शहीदों ने जो देश के लिए किया है उसे करने के जो हिम्मत चाहिए वो सब के पास नहीं हो सकती। पिछले कुछ दिनों से भटियात में शहीद के नाम पर सिहुंता  कॉलेज का नाम रखने के लिए वँहा के युवाओं ने एक मुहीम चलाई है। मेरा मानना है कि यही सबसे बेहतर तरीका है देश के शहीदों को सही सम्मान देने का जब वँहा के स्कूल और कॉलेज का नाम शहीदों के नाम पर रखा जाये। शहीदों के परिवार खुद को गौरवान्वित महसूस करेंगे और आने वाली पीढियां उनकी बहादुरी और देशभक्ति का अनुकरण करेंगी। अतः इस तरह की मांगों को सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए।
शहीद उस दीपक के समान है जिसने खुद को जला कर पूरे भारत को प्रकाशमय किया है। हम जो आज सुख की ज़िंदगी जी रहे हैं निर्भीक होकर अपने घरों में सोए हैं इसका कारण यही है कि सैनिक हिमालय के समान खड़े होकर - 50 ℃ पर भी हमारी रक्षा कर रहे हैं। वो गर्मी-सर्दी को भूल कर देश के प्रखर पहरी बने हैं। सब त्योहारों पर्वो की तिलांजलि दे कर सिर्फ देश सेवा को ही अपना धर्म मान कर दिन रात सरहद पर डटे हैं। जब गर्मी में हम ए सी की ठंडक ढूंढते हैं वो रेगिस्तान की तपती चादर ओढ़ कर देश के दुश्मनों के समक्ष खड़े रहते हैं। ऐसे सैनिकों के लिए बस इतना ही बहुत है कि हम हमेशा दिलों में उन्हें याद रखें उनकी क़ुरबानी को हमेशा याद करें। 
2016 में आतंकी हमलों ने भारत को अंदर से झकझोर कर रख दिया अगर आंकड़ो में बात करें तो 2015 के मुकाबले भारत में आतंकी हमलों में काफी इज़ाफ़ा हुआ देश के 49 जवान 2016 के आतंकी हमलों में शहीद हुए। वर्ष 2016 भारत में कई छोटे बड़े आतंकी हमले हुए जिसकी शुरुआत 2 जनवरी को पठानकोट हमले से हुई जो 3 दिन तक चलता रहा जिसमे भारतीय सेना ने 7 अनमोल जाने खो दी देश के 7 बहादुर सिपाही शहीद हुए और इसके बाद 25 जून 2016 को पम्पोर में हुए आतंकी हमले में 8 जवान शहीद हुए और 22 घायल, 5 अगस्त 2016 को असम में आतंकी हमला हुआ जिसमें असम राइफल के 14 जवान शहीद हुए । 18 सितम्बर 2016 को साल का सबसे बड़ा आतंकी हमला भारत में जम्मू के उड़ी में हुआ जिसमे सेना के 20 बहादुर जवान वीरगति को प्राप्त हुए और 8 जवान घायल हुए। परन्तु इस आतंकी हमले ने भारत के सब्र को तोड़ दिया और देशवासियों के अंदर भी पाकिस्तान की ऐसी हरकतों पर काफी गुस्सा नजर आया। सरकार की भी निद्रा टूटी और एक बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक कर के भारत के स्पेशल कमांडो ने उडी हमले का प्रतिशोध लिया। पाकिस्तान की सीमा में घुस कर भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान में चल रहे आतंकी केम्पो को तहस नहस कर के सैंकड़ो पाकिस्तानी आतंकवादियों को मार गिराया।
अब आखिर प्रश्न उठता है कि हम कब तक अपने देश के जवानों को मरते हुए देखते रहेंगे। आतंक ने ऐसा तांडव मचाया है जिसका अब कोई स्थायी हल ढूंढना आवश्यक है। देश का हर नागरिक अब भारत की सरकार से पूछ रहा है कि क्या हम आज जब विकास की राह पर अग्रसर है डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया और भी कई विकास की बातें हम कर रहे हैं क्या कोई ऐसा प्रबन्ध नहीं किया जा सकता कि देश में इन आतंकियों को घुसने से रोका जा सके। अब समय आ गया है कि भारत और भी कड़े रुख को अपनाए पाकिस्तान को विश्व के सामने नंगा कर के उसे आतंकी देश घोषित कराये। मौजूदा भारत सरकार ने कई बड़े कदम पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए उठाये भी हैं। वर्तमान में नोटबन्दी को भी आतंकी गतिविधियां रोकने में एक मील का पत्थर समझा जा रहा है। आज हम सब देशवासियों को ये संकल्प लेना होगा कि हम देश के शहीदों को हमेशा याद रखेंगे उनके एहसान को हम कभी भुला नहीं सकते। जब जब शहीदों के परिवार को जरूरत हो हम हर दुःख सुख में इनका साथ दें।  ऐसे वीर जवानों के लिए हर भारतवासी को हमेशा कृतज्ञ रहना चाहिए। आओ हम ऐसे सैनिकों का वंदन करते हैं और सबसे कहते हैं कि
आओ झुक कर करें सलाम उनको जिनके हिस्से में ये मुकाम आता है, कितने खुशनसीब हैं वो खून जिनका वतन के काम आता है।
जय हिंद

आशीष बहल 
चुवाड़ी जिला चम्बा