चम्बा के साहू में है ये रहस्यमयी चन्द्रशेखर मंदिर
जिला चम्बा मुख्यालय से लगभग 15 km दूर साहू गांव में स्थापित है चन्द्रशेखर के नाम से प्रसिद्ध एक विशाल शिवलिंग। ये चन्द्रशेखर मंदिर अपने आप में कई पौराणिक कथाएं समेटे है। तथा भारत के समृद्ध संस्कृति व आस्था का प्रतीक है ये मंदिर। मंदिर प्राचीन शैली से निर्मित है और लगभग 1100 साल पुराना बताया जाता है।
तांबे से जड़ित शिवलिंग
स्थापना का रहस्य :-
बताते हैं कि बहुत समय पहले साल नदी के समीप एक ऋषि गुफा में रहते थे जो साथ वहती साल नदी में स्नान करने जाते थे परन्तु वो जब भी सुबह वँहा पँहुचते उनसे पहले कोई नदी में स्नान कर जाता था इस बात से ऋषि हैरान हुए और उन्होंने ये जानने के लिए कि आखिर कौन उनसे पहले स्नान करने वाला धर्मात्मा पैदा हो गया वो इसकी खोज में लग गए । भगवान महेश सब जानते थे और मुनि की चिंता को भी समझते थे। अन, जल त्याग कर मुनि इस रहस्य को जानने में लग गए। तभी एक सुबह ही 3 शिलाएं महेश, चन्द्रशेखर, और चन्द्रगुप्त नदी में स्नान करने उतरती हैं ऋषि का मन ये देख हर्षित हो उठता है सही समय जान ऋषि उनके समीप जाते हैं जैसे उनके पास पँहुचे तो एक शिला कैलाश पर्वत की तरफ चली जाती है जो आज प्रसिद्ध मणिमहेश के रूप में बिश्वविख्यात है। चन्द्रगुप्त शिला ने उसी नदी में डुबकी लगाई और बहते हुए चम्बा नगरी के पास दुम्भर ऋषि के समीप जंहा दो नदियां साल और रावी मिलती है वंही विश्राम किया। एक दिन चन्द्रगुप्त ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिए और राजा ने चन्द्रगुप्त को लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास चन्द्रगुप्त को स्थापित किया। तीसरी शिला चन्द्रशेखर के रूप में वहीँ पर रुक गयी और वंही ठोस बन गयी। जब ऋषि ने उस शिला को उठाने का प्रयास किया तो असफल रहे वह बहुत भारी हो गयी। ऋषि का मन बहुत व्याकुल हुआ की आखिर इतनी तपस्या के बाद भी क्या हासिल हुआ तब ऋषि को भविष्यवाणी हुई कि पास ही एक गांव पंडाह में एक विन्त्रु सती रहती है अगर वो मुझे स्पर्श करेगी तो मैं फल की भांति हल्का हो जाऊंगा और यंहा से हिल पाउँगा और जंहा मुझे स्थापित होना होगा वँहा मैं भारी हो जाऊंगा। ऋषि ने उस सती भक्त को ढूंढा परन्तु सती ने साथ न आने का कारण बताते हुए कहा कि न तो उसके पति घर में हैं बालक अभी सोया है, मखन पिघलने के लिए रखा है और दूध अभी उबलने रखा है मैं इस समय नहीं आ सकती तो ऋषि ने वरदान दिया कि जब तक तू वापिस नहीं आयेगी बालक सोया रहेगा न मखन जलेगा न दूध उबलेगा। तू चिंता न कर और मेरे वरदान को सत्य जान। तब ऋषि अपने साथ उसे लेकर आये सती ने शिला को स्पर्श किया तथा समस्त नगर वासियों सहित शिला को पालकी में डाल कर और वँहा से चलना आरम्भ किया तभी साहू गांव में पँहुचते ही वो शिला शिवलिंग भारी हो गयी और वंही गांव में मंदिर की स्थापना की गयी।
यात्रा के दौरान अपने सहयोगियों के साथ
शिवलिंग को मेखली की पकड़ में रखा जाता और ये शिवलिंग दिन प्रतिदिन बड़ा होता जाता जितना भाग जमीन के ऊपर है उतना ही जमीन के नीचे बढ़ता जाता। एक दिन भगवान चन्द्रशेखर ने ऋषि को स्वप्न में बताया कि मेरे आसपास और मेखली न लगायी जाये जो मेखली शेष है उसे बाहर मंदिर के आंगन में लगा दिया जाये जो यंहा आने वाले समस्त जन मानुषों के दुखों का संहार करेगी। इस तरह चन्द्रशेखर महाराज वँहा स्थापित हुए। आज भी मणिमहेश के समान ही वँहा मेला लगता है मणिमहेश की यात्रा को तब तक सम्पूर्ण नहीं माना जाता जब तक साहू के मंदिर में माथा न टेका जाये इसलिए बहुत से लोग इस मंदिर में दर्शन को आते हैं। एशिया के सबसे विशाल शिवलिंग में गिना जाता है।
नंदी महाराज की स्थापना :-
जो इस मंदिर के बारे में एक और रोचक तथ्य है वो है यंहा पर स्थापित नंदी की प्रतिमा ये मंदिर के बिलकुल सामने स्थित है। इन नंदी के निर्माण का पहलूँ भी काफी रहस्यमयी है ये नंदी अपने आप उस जगह पर स्थापित हुए हैं। कहते है कि वो असली नंदी है जो रोज लोगो की फसल तबाह कर देते थे तो एक दिन ग्वाले ने उन्हें देख लिया और उन्हें रोकने के लिए पूंछ से पकड़ लिया और बस उसी समय उसी जगह वो नंदी और ग्वाल शिला रूप में परिवर्तित हो गए। आज भी नंदी के पीछे ग्वाल लटका हुआ दिखता है। तथा जो घण्टी नंदी के गले में है वो टन की आवाज देती है। विज्ञान में रूचि रखने वाले काफी लोगों ने इस पर खोज की परन्तु आस्था के आगे सब नतमस्तक है इसका रहस्य कोई जान नहीं पाया। इस प्रकार की नंदी की प्रतिमा अन्य किसी जगह में देखने को नहीं मिलेगी। देखने में सजे धजे नंदी के रूप में दीखते है जो अनायास ही किसी को भी अपनी और आकर्षित कर लें।
लेखक परिचय:-
आशीष बहल
चुवाड़ी जिला चम्बा हि प्र
अध्यापक, लेखक,कवि व विभिन्न अखबारों में स्तम्भ लेखन।
E-mail ___ ishunv0287@gmail.com
Good.....
ReplyDeleteHar Har Mahadev.
Nice sir thanx for information
ReplyDeleteहर हर महादेव
धन्याबाद जी
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