Tuesday, January 31, 2017

इस सैनिक की बहादुरी के आप भी हो जायेंगे कायल।

इस सैनिक की बहादुरी सुन आप भी कह उठेंगे

"इज़्ज़त दे न अज़मत दे, सूरत दे न सीरत दे
हे खुदा हे बस मुझे वतन की खातिर कुछ करने की हिम्मत दे बस मुझे मरने की हिम्मत दे"



एक ऐसा ही सैनिक था शहीद जगदीश चन्द। जी हां हवलदार जगदीश चन्द बहादुरी और देश के लिए मर मिटने वाली एक ऐसी शख्सियत जिसने दुश्मनों के नाकों चने चववा दिए। हिमाचल प्रदेश के जिला चम्बा के भटियात के जगदीश चन्द ने सेना में 24 साल तक देश की सेवा की।  वैसे तो सेना से रिटायर हो चुके थे 2010 में परन्तु सेना के प्रति अपना समर्पण कुछ ऐसा कि घर बैठना रास नहीं आया और डिफेन्स सिक्योरिटी कोर के रूप में फिर से सेना में सेवा देना शुरू किया और लेह में तैनात हुए परन्तु माँ भारती को कुछ और ही मंजूर था भारत माता जैसे जगदीश चन्द से कुछ और करवाना चाहती थी इसीलिए जगदीश चन्द को पठानकोट बुला लिया 1 जनवरी 2016 को पठानकोट में अपनी ड्यूटी ज्वाइन करने निकले और डयूटी के पहले दिन ही
2 जनवरी 2016 की वो सुबह जब आतंकवादियों ने अपने नापाक मंसूबो के साथ पठानकोट एयरवेज पर हमला किया और जब वो अंधाधुंध गोलियां चलाते हुए मैस में पँहुचे तो वँहा सामने ढाल बन कर खड़े थे जगदीश चन्द हिम्मत ऐसी की आतंकियों की ak 47 के सामने निहत्थे खड़े हो गए और आतंकी की ही राइफल छीन कर आतंकी को मार गिराया। तभी पीछे से चूहों की भांति खड़े अन्य आतंकियों ने जगदीश चन्द पर फायरिंग कर दी थोड़ी देर गुथमगुथा होने के बाद जगदीश चन्द माँ भारती की गौद ने चिर निद्रा की और चले गए भारत माता का ये बहादुर सपूत वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी बहादुरी की ये गाथा युगों युगों तक अमर रहेगी। भारत सरकार ने उनकी इस बहादुरी के लिए उन्हें शौर्य चक्र दे कर सम्मानित किया। आओ ऐसे असली धरती पुत्रों की कीर्ति को और फैलाये लोग उन्हें युगों युगों तक याद रखे बच्चे उनकी बहादुरी का अनुकरण करें यही ऐसे शहीदों को सच्ची श्रदांजलि होगी । जय हिंद


शहीद जगदीश और अन्य शहीदों को समर्पित मेरी ये रचना।
शहीदों को सलाम
आतंक का देखो कैसा ये कोहराम मचा है,कभी पठानकोट तो कभी उड़ी की साजिश को रचा है।
कई शहिदों ने शहादत का जाम पिया
शहीद जगदीश ने भी ऊँचा भारत का नाम किया,
शहीद हुए देश की खातिर,सीने पर गोली खाई थी,
आओ झुक कर करें सलाम इन्हें क्योंकि भारत माँ की लाज बचाई थी ।
लुट गयी माँ औ की कोख,कंही सिन्दूर ही उजड़ गया
गिली थी हाथो की मेंहदी अभी, कंही बजी अभी शहनाई थी,
शहीदों ने भारत माँ की लाज बचाई थी,
शहीदों ने भारत माँ की लाज बचाई थी।

लेखक परिचय:-
आशीष बहल
चुवाड़ी जिला चम्बा हि प्र
कवि, लेखक, अध्यापक और स्तम्भ लेखन विभिन्न समाचार पत्रों में

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