Wednesday, February 22, 2017

क्या आप जानते है महाशिवरात्रि का ये महत्व भी?

जानें क्या है महाशिवरात्रि का रहस्य
‘शिव की महान रात्रि :- महाशिवरात्रि का त्यौहार भारत के आध्यात्मिक उत्सवों की सूची में सबसे महत्वपूर्ण है। भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति में शिव को सबसे बड़ा स्थान दिया गया है। इसके आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कई पहलु सामने आते हैं इसलिए शिवरात्रि का त्यौहार भारत में बहुत प्रसिद्ध है शिव के बारे में अनन्य कथाएं सुनने को मिलती है सबकी अपनी महिमा है।  मैं यंहा आपको आस्था के पक्ष में नहीं ले जाना चाहता उसमें हर किसी का अपना तर्क वितर्क हो सकता है। मैं इस लेख के माध्यम से शिव के सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्ष को आप लोगों के सामने रखने का प्रयास करूंगा। शिव को किसी रूप में बांधा नही जा सकता क्योंकि वो निराकार हैं इसलिए शिव के रूप से ज्यादा उनके गुणों से साक्षात्कार करना परम आवश्यक है। सर्वप्रथम "महाशिवरात्रि" के अर्थ को समझने का प्रयत्न करते हैं।
महाशिवरात्रि:-
हर चंद्र माह के चौदहवें दिन या अमावस्या से एक दिन पहले शिवरात्रि होती है। एक कैलेंडर वर्ष में आने वाली बारह शिवरात्रियों में से फरवरी-मार्च में आने वाली महाशिवरात्रि आध्यात्मिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण है। इस रात धरती के उत्तरी गोलार्ध की स्थिति ऐसी होती है कि इंसान के शरीर में ऊर्जा कुदरती रूप से ऊपर की ओर बढ़ती है। इस दिन प्रकृति इंसान को अपने आध्यात्मिक चरम पर पहुंचने के लिए प्रेरित करती है। इसका लाभ उठाने के लिए इस परंपरा में हमने एक खास त्यौहार बनाया जो रात भर चलता है। ऊर्जा के इस प्राकृतिक चढ़ाव में मदद करने के लिए रात भर चलने वाले इस त्यौहार का एक मूलभूत तत्व यह पक्का करना है कि आप रीढ़ को सीधा रखते हुए रात भर जागें। इसलिए योगी रात रात भर जागरण करते हैं और इस ऊर्जा को अपने अंदर निहित करते हैं। योगियों से लेकर गृहस्थ जीवन तक शिवरात्रि को महत्वपूर्ण मानते हैं। शिव को आदि गुरु योगीनाथ के रूप में भी जाना जाता है ऐसा माना जाता है कि आज जिस योगिक क्रिया को जाना जाता है उसकी शुरुवात भगवान शिव से ही हुई थी। इसलिए शिवरात्रि को योगियों में इसलिये भी प्रसिद्ध माना जाता है रात भर जाग कर शिव का गुणगान करते हुए कई योगिक क्रियाएं होती है।
संस्कृति में स्थान:-

हिमाचल में शिव का गुणगान करने का भी अपना एक अलग ही तरीका है हिमाचल के लोगों का प्राचीन धर्म शैव था जो की भगवान् शिव के नाम पर था। यंहा के गद्दी समुदाय में शिव भक्ति को बहुत उच्च स्थान दिया गया है यंहा पर शिव के लिए रात भर जागरण चलता है जिसे "नूआला" कहा जाता है। ये शिव की भक्ति का सबसे अनोखा और अद्वितीय ढंग है ऐसी भक्ति की कला हिमाचल के अलावा अन्य कंही देखने को नहीं मिलती। शिवरात्रि के दिन भी हिमाचल के विभिन्न हिस्सों में " नुआले " गाए जाते हैं। नुआले करने के पीछे आध्यत्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही पक्ष सामने आते हैं। नुआले में सांस्कृतिक पक्ष ये है कि इससे लोक गाथाओं और कलाओं को बढ़ावा मिलता है। नुआले में 4 से 5 लोगो का समूह होता है जो अपने पारम्परिक वाद्य यंत्रों से तथा शिव की महिमा को गाकर लोगो को धर्म और संस्कृति का ज्ञान देते हैं।  हिमाचल में शिवरात्रि के दिन विवाह करना बहुत शुभ माना जाता है यंहा गद्दी समुदाय के लोगो के विवाह में शिव आराधना की जाती है तथा शिव के वेश भूषा धारण करके ही विवाह की रस्मे अदा की जाती हैं।

अध्यात्म और योग का परिचायक:-
आध्यात्मिक और गृहस्थ जीवन वालो के लिए शिवरात्रि को शिव के विवाह की रात मानते हुए अपनी महत्वकांक्षाओ की पूर्ति हेतु ब्रत धारण करके शिव की आराधना करते हैं। योगी इसे शिव के स्थिर रूप की उतपति मानते हुए कैलाश के समान स्थिर अचल होकर संसार के प्रथम गुरु आदिगुरु की भक्ति करते हैं। हर वर्ग के बीच शिवरात्रि के अपने अपने पक्ष सामने आते हैं। विज्ञानं में किसी उतपति को स्वीकार नहीं किया जाता इसलिए वैज्ञानिक पक्ष की भी पूर्ति करता है शिवरात्रि का त्यौहार। शिव तो अस्तित्वहीन है ये तो साक्षात् एक शून्य है जो न तो शुरू होता है न ही समाप्त।
शिव के रूपों से प्रेरणा:-

* शिव के स्वभाव से हमें जीवन यापन की प्रेरणा मिलती है। यदि शिवरात्रि के अर्थ को सही ढंग से समझना है तो हमे शिव के रूप को उनके स्वभाव को समझना होगा शिव के हर रूप से जो प्रेरणा मिलती है उसे अपने जीवन में उतारना होगा। शिव के शाब्दिक अर्थ के अनुसार कि " जो नहीं है" अर्थात जो संसार में आपका है ही नहीं जिसका कोई आकार नहीं अर्थात सब कुछ शून्य है। विज्ञानं के अनुसार शून्य से पैदा हुआ और शून्य में निहित होना। शिव का ये निराकारी रूप समस्त प्राणियों को प्रेरणा देता है कि भोग विलासिता से दूर रहो सादा जीवन व्यतीत करो। फ़क़ीर की तरह जियो ताकि संसार की भौतिक वस्तुएं कभी आपको दुःख न पँहुचा सकें।
* शिव आदि कैलाश पति के रूप में सन्देश देते है विकट परिस्थिति में भी पहाड़ की तरह खड़े रहो। मुश्किल परिथिति में भी जीवन यापन किया जा सकता है। इसलिए शिव को ही लोक गाथाओं में इस अलौकिक संसार का गुरु बताया गया है।


*शिव का नीलकंठ रूप सन्देश देता है अच्छाई की बृद्धि के लिए यदि बुराई को धारण करना पड़े सहर्ष धारण करने के लिए तैयार रहें,  बलिदान देने के लिए प्रेरित करता है शिव का नीलकंठ रूप जब समुद्र मंथन में विष प्राप्त हुआ तो शिव ने संसार की रक्षा हेतु उसे अपने कंठ में धारण कर लिया शिव का ये रूप हमे संसार के लिए कुछ करने की प्रेरणा देता है। शिव को सभी जीव जंतुओं का भी देवता माना जाता है ऐसी धारणा है कि संसार के समस्त जीव शिव की झोली में रहते हैं।
*भूतनाथ:-
शिव सांपो को गले में धारण करते है। भूतप्रेत यानि बुरी ताकतों की भी वश में रखते हैं। शिव का ये रूप सन्देश देता है कि सभी प्राणियों से प्रेम करो किसी के साथ घृणा मत करो। सभी मिलजुल कर जीवन यापन कर सकते हैं।
*शिव को भोला भंडारी भी कहा जाता जाता है और रूद्र भी,  शिव का ये रूप सन्देश देता है कि हमे स्वभाव में हमेशा भोले और दयालु रहना चाहिए ताकि सबके हृदय में वास कर सकें और रूद्र रूप से सन्देश मिलता है कि जब जब धर्म की हानि हो पाप बढ़े तब अपने कर्तव्यों से विमुख हुए बिना अन्याय के सामने रौद्र रूप में खड़े होने के लिए तत्पर रहो।  शिव के अनेकों रूप और अनेको नाम है हर नाम में कोई न कोई शिक्षा छिपी है।
इस शिवरात्रि हम सब ये प्रण ले कि शिवरात्रि को मात्र एक त्यौहार या ब्रत के नजरिये से न देखे बल्कि आज समाज में मूल्यों के ह्रास के कारण जो समाज के पतन हो रहा है उसमें शिव के दर्शन को और शिक्षाओं को अपनाएं ताकि समाज की दिशा और दशा दोनों में परिवर्तन हो।
आशीष बहल
चुवाड़ी जिला चम्बा हि प्र

No comments:

Post a Comment